मनुष्य के कर्म की महत्वपूर्ण बाते खास आपके लिए
मनुष्य के कर्म के बारे में कुछ रोचक बाते
मनुष्य के कर्म में छिपा है जीवन का मर्म, अच्छे कर्म ही सद्गति के परिचायक है. यदि आप अच्छे कर्म करेंगे तो मौक्ष की प्राप्ति होगी और जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जायेंगे. पंचतन्त्र की कथाओ में कर्म के महत्व को बताया गया है. उपनिषदों में तो सत्कर्म की शिक्षा दी गई है. प्लेटो ने अपना काम करने को ही न्याय बताया है. सही भी है कि मनुष्य का अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर उसका अधिकार नहीं है. मनुष्य के अन्दर ५ विकार, काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार होते है जो खुद के शत्रु है. सबसे पहले अपने अन्दर छिपे शत्रुओ को मारने का प्रयास करे जिसको खुद ही पालता है.
जब हम इस दुनिया में आते है तो मनुष्य के कर्म से ही अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करते है. जिन्दगी में उतार चढ़ाव, सुख दुख मान अपमान, लाभ हानि सब कर्मो पर ही निर्भर होता है. व्यक्ति की पहचान भी कर्मो से बनती है. परन्तु वे कर्म आम दिनचर्या से हटकर होते है. हम देखते है कि पुरे जीवन भर कही न कही टकराव, दोस्ती, हिंसा, झगडा, तनाव अदि की घटनाये हो जाती है और जैसी घटनाये वैसी ही व्यक्ति की पहचान बनने लगती है. फिर लोग हमें उसी नजरिये, विचार तथा दृष्टी से देखना और व्यवहार करना शुरू कर देते है. हम सोचते है कि अमुक व्यक्ति मेरा दुश्मन है. हितेषी नहीं परन्तु कभी हमने विचार ही नहीं किया कि इन सब घटनाओ के पीछे कौन दोषी है और यह सब किस कारणों से घटित हो रहा है.
मनुष्य के कर्म
परमात्मा को माने सच्चा मित्र हम छोटे बुरे कर्मो के कारण अन्दर से इतने कमजोर हो गए कि अच्छे संस्कारो को अपना नहीं पाते है. सामने वाले के मनुष्य के कर्म से प्रभावित होते रहते है. ऐसे में स्वयं को मजबूत बनाये. परमात्मा से प्रार्थना करे कि है प्रभु जिस कर्म के लिए दुनिया में आपने भेजा है. उसे करने में हमारी मदद करे. तब परमात्मा ही आपका सच्चा साथी होगा. जब भी ऐसी बात आएय आप बिलकुल शांतपूर्ण होकर उसके बारे में सोंचे और फिर निर्णय ले. यह शुरुआत आपके लिए लाइफ लाइन होगी. आपको सकारात्मक ऊर्जा से भी भर देगी.
इन्द्रियो का लगाये दरबार प्रतिदिन सोने से पूर्ण पुरे दिन में हुए करोमो का विवेचन करते हुए परमात्मा को बताये और सबकुछ उनको अर्पण कर दे. आप बेहद हल्का महसूस करेंगे. सवेरे उठते ही ईश्वरीय स्मरण से यह संकल्प ले कि हे परमात्मा आज हमसे कोई भी ऐसा कर्म न हो जिससे किसी प्रकार का किसी को दुख अथवा हमें दुख पहुंचे कोई भी कुछ भी करे आप उसके सकारात्मक समाधान के लिए खुद आत्मावलोकन करे. सोने से पहले कभी भी अपने सभी कर्मेन्द्रिय का दरबार लगाये. फिर हर एक कर्मेन्द्रिय से पूछने प्रयास करे कि आज तूने सिधांत के खिलाफ कोई गलत काम तो नहीं किया ? प्रतिदिन हर कर्मेन्द्रिय से राजा की भाती पूंछे जिससे आपको अपने शरीर से भी अलग मालिक की अनुभूति होगी और आप एक सफल व्यक्ति बन जायेंगे. फिर दुनिया में सभी आपके मित्र होंगे.
कर्म ही बनाते है मित्र और शत्रु, मनुष्य के कर्म ही है जो लोगो के शत्रु और मित्र बनाते है. हमारे मन में दुसरो के प्रति नफरत और घृणा दुर्भावना पैदा होती है तो उसके जिम्मेदार हम ही है. दुनिया में तो कर्म होते रहेंगे. लेकिन यदि दुसरो के कर्मो से प्रभावित होकर हम अपना नुकसान कर ले तो यह हमारे लिए भी नुकसानदायक होता है. जब हमारे मन में गुस्सा. लालच, अहंकार आदि आता है तो वह सबसे पहले हमें ही उद्देलित करता है. हमें उकसाता है. उल्टे कर्म करने के लिए हमारे ऊपर प्रेत की भाती सवार हो जाता है. फिर हम पाना विवेक, समझ, सहनशक्ति और चातुर्य आदि सब खो बैठते है. यह घटना ठीक उसी तरह होती है जैसे जब नदी में बाढ़ आ जाति अहि तो पानी आपे से बाहर होकर चारो और बहने लगता है. लेकिन जैसे ही पानी कम हो जाता है. शांत हो जाता है. तो पुन: नदी के गर्भ से ही होकर बहता है. अपने असली अस्तित्व में रहता है. स्वयम का करे आत्मावलोकन किसी भी चीज में हमें दुसरो को दोषी मानने के बजाये खुद के अन्दर झाँकने का प्रयास करना चाहिए. जो सफल पुरुष होते है. वे इन बातो में सबसे पहले खुद का ही आत्मावलोकन करते है. दुसरो को दौष देने के बजाये अपने उत्पत्ति से इस तरह की घटनाये घटती है. हम देखते है कि अपने परिवार समाज में हम छोटी मोटी बातो से क्रोधित हो जाते है. आपकी इच्छा पूरी नही हुई तो क्रोध आ गया. आपका कोई कहना नहीं माना तो क्रोध आ गया. ऐसी तमाम स्थिति है जिसके प्रभाव से हम प्रभावित होकर उल्टे कर्म करते है. भगवान ने गीता में अर्जुन से स्पष्ट शब्दों में कहा कि है अर्जुन मनुष्य के ५ विकार ही मनुष्य के असली शत्रु है. इसलिए मनुष्य को सबसे पहले अपने अन्दर के छिपे उस शत्रु को मारने का प्रयास करना चाहिए. – ब्रम्हा कुमार कोमल
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